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Thursday, October 2, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : जिंदगी बारूद की कहानी तक


  


छेनिओं से हथौड़ों तक 
चोट पर चोट करते 
कभी संबंधों से 
अनुबंधों तक
अनुच्छेदों से विच्छेदों तक
कभी आग से पानी तक 
या फिर आग से 
बारूद की कहानी तक 
इस अखाड़े से उस अखाड़े तक 
कुस्ती और दंगल 
कभी धारा के संग 
कभी विपरीत 
कभी रुकती कभी रेंगती 
कभी होने की गवाही से 
न होने की तबाही तक 
रौशनी से गुमनामी के 
अंधेरों से होती हुई 
एक अंधी सुरंग के बीच 
पड़ाव दर पड़ाव 
घुटने या सीने में 
दर्द की गठरी की तरह 
निचोड़ो तो खून 
खून खून और  खून 
नहीं नहीं 
कत्तई इतना ही नहीं
और बहुत कुछ है 
कभी कंठी तो
कभी सुमिरिनी  कभी
एक चुटकी सिन्दूर 
का बोझ उठाते माथे 
और माथों पर 
न जाने कितनी लकीरें 
कभी आड़ी कभी सीधी 
बेहिसाब दौड़ती
टूटते आस्था और विश्वास 
ढहती  दीवारें  
टुकड़ों में  बटते आंगन 
या  हमारे  दिल 
रूप  को अर्थ  देने से 
अनर्थ  लिखने  तक
के साथ  एक ऐसा  
सफ़ेद झूंठ 
जिस पर  लिखा है रवानी 
दरअसल  एक आग  है 
और  रिस  रहा है  हर पल
एक  लाल  रंग  का पानी 

      अज़ीज़  जौनपुरी



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