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Friday, June 28, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी फ़ड़फ़ड़ा कर

      फ़ड़फ़ड़ा कर 

क्या   से  क्या   करता  नहीं  जिंदगी  में आदमी 
सुबह  से   लेकर   शाम  तक  दौड़ता  है  आदमी 

एक   रोटी ,  एक  धोती ,  एक   खटिये  के लिए 
इस  सिरे  से  उस  सिरे  तक   दौड़ता  है आदमी 

फड़फड़ा  कर  जैसे  - तैसे  उम्र  काटी  आदमी ने
सिर्फ़  संग  करनी  धरनी  ले    के  जाता आदमी

 ईमान   बिक  यहाँ   रहा   है   कौड़ियों    के भाव
 खूँ   आदमी   का   शौक   से   करता   है  आदमी

हर  क़दम  पे  मौत  है ,है  खूँ  का  प्यासा आदमी
आदमी  जो   आदमी   था   है  नहीं  अब  आदमी

 आदमी   किस  कदर   आज  पागल   हो  गया है
 घर  से  लेकर  घाट  तक  बिक   रहा   है  आदमी

  जिश्म   है ,  बाज़ार   है ,  बिक   रहा   है  आदमी
  ऐ  ख़ुदा  इस  ज़हाँ  में  तू  इक  दिखा  दे  आदमी

  क्या कहें क्या हो गया क्यूँ गुम हो गया है आदमी 
  तड़फड़ा  कर  फड़फड़ा  कर  मर गया क्यूँ आदमी
                                अज़ीज़ जौनपुरी 
 



                                    






1 comment:

  1. जिश्म है , बाज़ार है , बिक रहा है आदमी
    ऐ ख़ुदा इस ज़हाँ में तू इक दिखा दे आदमी .....
    रचना बे-मिसाल हैं .....

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